निम्न लिखित आधा सिर दर्द का टोटका | आधा सीसी दर्द | आंधा शीषी की कहानी बहुत प्रभावशाली है। Tantramantra.in एक विचित्र वेबसाइट है जो की आपके लिए प्राचीन तंत्र मंत्र सिद्धियाँ टोन टोटके पुरे विधि विधान के साथ लाती है. TantraMantra.in कहता है सभी तांत्रिक मित्रों को इन कार्यविधियों को गुरु के मध्य नज़र ही करना चाहिये। तथा इन इलमो को केवल अच्छे कार्य में ही इस्तेमाल करना चाहिए, अन्यथा आपको इसके बुरे परिणाम का सामना खुद ही करना होगा ।
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आधा सीसी दर्द (आधा सिर दर्द का टोटका)
विधि – इस मंत्र का उच्चारण करते हुए रोगी व्यक्ति को 21 बार झाड़ा करने से आधा सौसी तथा मथवाई नामक रोगों का नाश हो जाता है ।
मंत्र –
ॐ नमो आदेश गुरु का। |
काली चिड़ी चिग चिग करे
धौली आवै वासे हरै
जती हनुमन्त हांक मारे
मथवाई और आधा सीसी नासे
गुरु की शक्ति
मेरी भक्ति
फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा
आंधा शीषी की कहानी।
आज हम आंधा शीषी की कहानी सुनाएंगे जिस किसी भी व्यक्ति को आंधा शीसी हो या फिर आंधा शीसी का सिर दर्द रहता हो आप उस व्यक्ति को यह कहानी सुना देना वह व्यक्ति स्वस्थ हो जाएगा और उसके सर का दर्द जड़ से खत्म हो जाएगा आइए अब कहानी सुनते हैं!
एक समय की बात है तीन गूंंगे व्यक्ति थे वह कुछ काम धंधा तो करते नहीं थे सारे दिन घर में बेकार ही पड़े रहते थे, एक दिन उनके घर वालों ने उन्हें घर से निकाल दिया, तद पश्चात वह तीनों गूंगे चलते फिरते एक कुमहार के घर जा पहुंचे और कुमहार से कहने लगे कि कुमहार हमें एक ऐसी हांडी बनाकर दे जो ना कच्ची हो और ना ही पक्की हो, हमें बिना निहाई में दी हुई हांडी दे दे, तब कुमहार गुस्से में कहने लगा उनसे, भागो यहां से, ऐसी हांडी है क्या भला?
मैं तुम्हें बिना न्याय में दी हुई हांडी कहां से लाकर दूं? तुम जाओ यहां से. तब वह तीनों गूंंगे हूं में बोले कुम्हार से तब कुमहार ने भी हूं में ही उनका उत्तर दिया और इस प्रकार कुमार ने उनकी बात का हुकारा भर दिया. अब तीनों गूंंगे जैसे ही कुमार के घर से निकले तब न्याय भी उनके पीछे पीछे चल दी. तब कुम्हार शोर मचाते हुए बोलने लगा कि देखो. चोर चोर चोर पकड़ो इन्हें देखो यह मेरी न्याही लेकर जा रहे हैं
यह सुनकर गुंगे वहां रुक गए तब कुमार उनके पास आकर कहने लगा कि मैं तुम्हें वैसे ही हांडी बनाकर देता हूं जैसी तुम चाहते हो मेरी नाही को मत लेकर जाओ कुछ ही देर में कुम्हार ने उन्हें वैसे ही हांडी बनाकर दे दी जैसी कि वे चाहते थे वह तीनों गूंंगे हांडी को लेकर वहां से चल दिए!
चलते चलते वह तीनों एक बनिए की दुकान पर जा पहुंचे और बनिए से कहने लगे कि बनिए हमें ऐसे चावल दे दे जिनका कोई तोल भी ना हो और कोई मोल भी ना हो बिना ताखड़ी तराजू के और बिना बट्टे के चावल देना हमें तब यह सुनकर बनिया गुस्से में उनसे बोला कि मेरे पास ऐसे चावल नहीं है तुमने कभी देखा भी है बिना तोले मोले बिना ताकड़ी बट्टे के चावल बिकते हैं भला
मेरे पास नहीं है ऐसे चावल तुम जाओ यहां से यह बात सुनकर तीनों गूंंगे हूं बोले तब गुस्से-गुस्से में बनिए ने भी हूं ही उत्तर दिया और इस प्रकार उन गूंंगे की बात का बनिए ने हुकारा भर दिया अब वह तीनों गूंंगे बनिए की बात सुनकर बनिए की दुकान से जाने लगे तब उनके पीछे पीछे बनिए की दुकान भी चल दी
तब यह देखकर बनिया तेज-तेज चिल्लाने लगा कि देखो देखो ये गूंंगे मेरी दुकान को लेकर जा रहे हैं मेरी हटड़ी ले गए मेरी हटड़ी ले गए मेरी दुकान ले गए ये मैं क्या करूंगा अब यह सुनकर वह तीनों गूंंगे वहीं रुक गए तो वह दुकान जो उनके पीछे पीछे आ रही थी
वह भी वहीं रुक गई तब वह बनिया भाग कर उनके पास आया और कहने लगा कि मैं तुम्हें वही चावल दूंगा जैसे तुम मुझसे मांग रहे हो बिना तोल मोल के और बिना ताखड़ी बट्टा लगाए तुम रुको तुम मेरी दुकान मत लेकर जाओ अपने साथ तब बनिए ने उन्हें वह चावल दिए बनिए की दुकान जहां थी वहीं वापस स्थापित हो गई, बनिए से चावल लेकर वह तीनों गुंगे अब आगे बढ़े,
तब उन्हें चलते चलते रास्ते में कुछ गायों के गुवाले मिले, तब वह तीनों गूंंगे उनसे कहने लगे कि अरे गुवालो, हमें एक ऐसी गाय का दूध दो जो कभी ब्याई ना हो और कभी ब्याने वाली भी ना हो, यह सुनकर गोवाले कहने लगे कि ऐसी गाय को दूध कभी आता भी है क्या? तुम जाओ यहां से, भागो यहां से, हमारे पास ऐसी गाय का दूध नहीं है, तब उन गुंगों ने हूं बोला तो गुवालों ने भी पीछे पीछे हु में उत्तर दिया और इस प्रकार गूंगो की बात का गुवालों ने हुकारा भर दिया और ग्वालों से इस प्रकार का उत्तर सुनकर वह तीनों गूंंगे अब वहां से चल दिए!
तब उन गूंगों के पीछे पीछे गोवालों की सभी गाय चल दी और यह देखकर गोवाले कहने लगे: कि अरे भाई, हमारी गायों को तो मत ले जाओ अपने साथ, हम दे देंगे तुम्हें वह दूध जो तुम हमसे मांग रहे हो, तब गुवालों ने उन गूंंगे को वह दूध दिया तो वह गाय गुवालों के पास ही रुक गई!
अब वह तीनों गूंंगे आगे चलने लगे, तब उचित स्थान देखकर उन गूंगो ने वहां चूल्हा बनाकर उस पर हांडे में दूध डालकर चावल डालकर चढ़ा दिए, तब एक गुंगा उस चूले में में लकड़ी सरकाने लगा और दूसरा गूंगा लकड़ियां चुग-चुग कर लाने लगा, अब उस हांडी की खीर पकने लगी, तभी वहां कुछ गुवाले आ गए और उन गूंगों से पूछने लगे: कि इसमें क्या बन रहा है? तब वह गूंंगे कहने लगे कि इसमें खीर बन रही है!
तब गुवाले कहने लगे उनसे कि इसमें तो कुछ ऐसा बन रहा है जो नाच रहा है. तब उन गूंगो ने हांडी का ढक्कन उतार कर देखा तो उसमें आंधा शीशी नाच रही थी.तब वह गूंंगे कहने लगे कि हम तो खीर बना रहे थे, यह क्या बन रहा है? इस हांडी में? तब वह कहने लगी कि मैं आंधा शीषी हूं. यह सुन गूंंगे आपस में कहने लगे. कि हम तो खीर बना रहे थे, यह आंधा शीशी इसमें कैसे बन गई और फिर यही बात उन्होंने उस आंधा शीशी से कही!
आंधा शीषी कैसा उत्पन हुई।
तब उनकी यह बात सुनकर आंधाशी कहने लगी कि एक तो तुम तीनों गूंंगे और तुम बिना ब्याही गाय जो कभी ब्याएगी भी नहीं,हीं उस गाय का दूध लाए, बिना तोले, बिना मोल के चावल लाए, ना कच्ची और ना पक्की हांडी लेकर आए, तुम और तुम्हारी वस्तुओं के मेल से मैं आंधा शेशी बन गई, उसकी यह बात सुनकर तीन गूंंगे उससे कहने लगे कि अब तुम क्या करोगी?
आंधा शिषी का रोग किसे लगता है।
तब आंधा शिषी बोली कि जिस व्यक्ति को पानी में सूरज दिख जाए और उसे सूरज का पलका लग जाए, शीशे में शनिवार के दिन उसे पलका लग जाए तो उसे आंधाशी का रोग हो जाता है, जिसके कारण उसके आधे सर में हमेशा दर्द रहने लगता है. आंधाशी की यह बात सुनकर तीनों गूंंगे उससे बोले कि वह व्यक्ति ठीक कैसे होगा? तब आधाशी? कहने लगी कि यदि वह व्यक्ति अपना सिर पकड़कर बैठ जाए और उसे कोई यह आंधा शीशे की कहानी सुनाए और झाड़ा दे तो उसका आंधा शिशी का सर दर्द हमेशा के लिए खत्म हो सकता है!
आंधा शिषी का झाड़ा कैसा लगाया जाता है।
कहानी सुनने के बाद यह आंधा शीशी का झाड़ा इस प्रकार लगाया जाता है सबसे पहले जिस व्यक्ति को आंधा शीशी का दर्द है उस व्यक्ति को शिखर दोपहर में या फिर शाम के समय जब दोनों वक्त मिले तब दरवाजे की धेल में बैठकर पहले रोगी को यह आंधा शीषी की कहानी सुनाएं और हुंकारे भरवाएं उससे तत्पश्चात आंधाशी रोग से ग्रषित व्यक्ति अपना सिर पकड़कर धेल में बैठ जाए और वह दूसरा व्यक्ति उसे कहानी सुनाने के पश्चात कुछ ऐसा कहे यह झाड़ा है इसे मौन रहकर लगाना चाहिए
मंत्र: कालियो चिनो धांसे नहीं आंधा शीशी नाशे नहीं कालियो चिनो धांसे नहीं आंधा शीशी नाशे नहीं
इस प्रकार दो बार बोले, तब तक आंधा शिशी के रोगी को चुप रहना चाहिए, तत्पश्चात कहानी सुनाने वाले को यह बोलना चाहिए कि गई कि नहीं, हीं तब रोगी को कहना चाहिए कि गई, इस प्रकार से तीन बार बोलना चाहिए!
जरुरी जानकारी।
आंधा शीशी का झाड़ा लगाते समय इन सब बातों का पालन करना आवश्यक1 है कि कहां चुप रहना है और कहां बोलना है!
( सिर के आधे हिस्से मे होने वाले दर्द को ‘आधा सीसी’ कहे है )
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