दस महाविद्या मंत्र | 10 mahavidya - Tantra Mantra

दस महाविद्या मंत्र | 10 mahavidya

ये दस महाविद्याएँ (१) काली, (२) तारा, (३) षोडशी, (४) भुवनेश्वरी, (५) धूमावती, (६) छिन्नमस्ता, (७) त्रिपुरभैरवी, (८) बगला, (९) मातङ्गी और (१०) कमला हैं। ये दो कुलों में विभक्त हैं। एक काली-कुल, दूसरा श्री-कुल। काली-कुल में काली, तारा, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता—ये चार इन दस महाविद्याओं में से हैं। इनके अतिरिक्त रक्त-काली, महिष-मर्दिनी, त्रिपुरा, दुर्गा, प्रत्यङ्गिरा—ये पाँच विद्याएँ भी काली-कुल में गिनी जाती हैं। श्री-कुल में षोडशी अर्थात् त्रिपुर-सुन्दरी, त्रिपुर-भैरवी, बगला, कमला,

प्रथम दस महाविद्या मंत्र ज्योति महाकाली प्रगटी (महाकाली)

ॐ निरञ्जन निराकार अवगत पुरुष तत्व सार, तत्व सार मध्ये ज्योति ज्योति मध्ये परम ज्योति, परम ज्योति मध्ये उत्पन्न भई, माता शम्भु शिवानन्द काली, ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वाहिनी, रक्त की पियोषी, हाथ खप्पर खण्डा धारी, गले मुण्डमाल हंस मुखी। जिन्हा जडता जागृत कली काली मां संगिनि श्मशान की रानी। मांगर खाये स्त्री-पी-पोई। अवसाना भाई जब नर पाई जहां पर पाई तभी लाई। सत्य की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोगी की जोगिन, नागों की नागिन मन माने तो संग सगाई नहीं तो श्मशान फिर अंबेली चार शेर आठ भेड़ी, धेर काली अंधेर काली उज्जर बजर अमर काली अम्बे तुझ निर्भर काली बल भड। काली के भड, काली भड पापियों का भक्षण उदास सतियों की रक्षा, ओ काली तुज बल बलान नू दूध, बकर दान दानव, नर पाखण्ड का भक्ष उदास सतियों की रक्षा। ओ काली तुज बल बलान। या दिना देवीसी तुम हे तो परसिद्ध काली।

मंत्र

क्रॉं क्रॉं क्रॉं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूँ हूँ दक्षिणे हूँ हूँ हूँ क्रॉं क्रॉं क्रॉं हूं।

 

द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोलता प्रगटी (तारा)

ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया। ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोलता माता तिनों बसे ब्रह्म कपाली, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उपति, सूरज मुख तपे चंद्र मुख अमरस्स पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खड्ग गल मुण्ड माल, मुर्दी मार ऊपर खड़ी देवी तारा। नीली काया पीली जटा, काली दंत जिह्वा दबाया। धोर तारा अघोर तारा, दूध पुठ का भण्डार भया। पंच मुख करे ह ह स:स:कार, इन्द्राणी शक्तिकाली भूत पीतला सी सो कोस दूर भगाया। चण्डी तारा फिर ब्रह्माण्ड तुम तो हे तीन लोक की जननी।

मंत्र

ॐ हूँ श्री फट्, ओ ऐ हूँ श्री हूँ फट्।

 

तृतिय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी  ( पोड़शी-त्रिपुर सुन्दरी )

ऊँ निरंजन निराकार अवधू मूल हार में बन्धा लगाई पवन पटलै गगन समाई, ज्योति मध्यें ज्योतिः ले रिसर हो भई ऊँ मध्य। उत्पन भई ऊषा त्रिपुर सुन्दरी शक्ति आवे शिवघर बैठे, मन उन्मन, बुद्घ सिद्ध चित में भयवाद। तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भय प्रकाश। हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश। त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी। इड़ा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी। ऊषा बाला, रूद्र बाला तीनों ब्रह्माण्डी में भय अजेयबाला। योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता।

मंत्र

श्री ऐं क्लीं एै सौं श्री श्री श्री ॐ एर्द्वल
हिं हिं सकल हिं सकल हिं सौः
ऐं क्लीं ऐं श्री

 

चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रकटी। ( भुवनेश्वरी)

ऊँ आदि ज्योत आनादि ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत–परम ज्योत मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ऊँ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी। बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश। अनपूर्ण क्षुपूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे योगी को अमर काया। चौदह भुवन का राजपाठ संभाला कटे रोगा योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कटक मारा। योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता।

मंत्र

हिं

 

पंचम ज्योति छिन्नमस्ता प्रकटी। ( छिन्नमस्ता )

सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया। काया तपाये जोगी (शिव गौरस्व) बेल, नाम कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुकुमारी देवी, त्रिकुटी महत में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुंडा हाथ में लीन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धारणी। पीवी पीवे रक्त, बस्से त्रिकुट मस्तक पर अगिन प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कबीली धारी। देवी उमा की शक्तित छाया, प्रलयैं खाये सृष्टि सारी। चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भक्ष भक्ष बाला भक्ष दुष्ट के मुख जटी, सती की रख, योगी घर जोगन बैठे, श्री शम्भुस्तुति गौरखनाथ जी ने भाखी। छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कटन्दे आपो आप जो जोगी करे सुमिरन पाप पुण्य से न्यारा रहे। काल न खाये।

मंत्र

श्री लाटी हूँ हूँ तब धेरे बनती हूँ हूँ हूँ स्वाहाः।

 

प्रकटम ज्योति भैरवी प्रकटी। ( भैरवी )

ॐ सती भैरवी भैरव काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटी, गले में माला मुण्डक की। अमय मुण्ड पीये रूधिर नाशवती। काला खप्पर हाथ खन्जर, कालपीर धर्म। धूप सेवनवासा गई सातें पाताल, सातवे पाताल मध्य पवस्तल में जोत, जोत में परम् जोत, परम् जोत में भाई उत्पन्न काल भैरवी, त्रिशूल भैरवी, सम्पत प्रद भैरवी, कौशल्या भैरवी, सिद्धा भैरवी, विद्यानिर्मली भैरवी, चेतन भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, षट्कुटा भैरवी, नित्य भैरवी। जपा जप गौरा जपती यहीं मन्त्र मन्त्रलेखागुरु जी को सदा शिव ने कसीदा। ऋद्धि फूले सिद्ध फूले सत श्री शम्भुती गुरु गौरलेखान श्री अनन्त कोटि सिद्ध लो उतरो काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी शिव शीश पर, दूर होते काल जन्माल भैरवी मन वैकुण्ठ वासा। अमर लोक में हुआ निवास।

मंत्र

“ॐ हसौः हसकर्तरि हसौः।

 

सप्तम ज्योति धूमावती प्रकटी। ( धूमावती )

ॐ पाताल निरञ्जन निराकार, आकाश मण्डल ध्वध्वकार, आकाश दिशा से कौन आई, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावती आई, काक ध्वजा का रथ असवार डेर धसेरी डेर आकाश, विधाता रूप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नैन दुष्ट स्वभाव, ढमरु बाजे भड़काली, तलेश कलक कलराज्ञी। डंका डंकी काल किट किट हायस करी। जीव स्वलने जीव भखनेवो जायग जीया आकाश तेरा होय रे। धूमावतीपुरी में वास, न होती देवी न देव वहाँ न होती पूजा न पाती वहाँ न होती जात न जाती तब आये श्री शम्भुजती गुरु गौरलेखाय आप भयी अतीत।

मंत्र

ॐ धूं: धूं: धूमावती फट् स्वाहा।”

 

अष्टम ज्योति बगलामुखी प्रकटी। ( बगलामुखी )

ॐ सौ सौ सुतासमुद्र यपू, यपू में यापा सिंहासन पीला। सिंहासन पीले ऊपर कौन बैठे सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैठे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी। कच्ची बच्ची काक-कूटीया-स्वान चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुण्डर मार, शत्रु हृदय पर स्वर तिसकी जीभा खिच्चे बाला। बगलामुखी मरणी करणी उच्चारण धरणी, अनन्त कोटि

मंत्र

ॐ ह्रीं ब्रह्मास्त्रायै विद्धनहे स्तम्भनायै
धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात्

 

नवमी ज्योति मातंगी प्रकटी। ( मातंगी )

ॐ गुरुञ्जी शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ओंकार ॐंकार में शिवम् शिवम् में शक्ति-शक्ति अपनेते उज्ज्र आपो आपवा, सुभग में धाक कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजो पूजो मातंगी बाला, शीश पर शशी अम्बर प्याला हाथ खड़ग नीली काया। बत्ता पर अस्वारी उड़्ज उज्जत मुद्राधारी, उड़ गूगुल पान सुपारी, खीर खाण्डे मध्य मांसै घृत कुफे सर्वाघायी बुद्ध मन्त्रे कचवा प्याला, मातंगी माता तुष्यन्ति। ॐ मातंगी सुदक्षिणी, रूपवती, कामदेयी, धनवती, धनदात्री, अन्नपूर्णा अन्नदाता, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये। तिसकी रक्षा शम्भुतजी गुरु गौरलेखान जी करे।

मंत्र

ॐ ह्रीं ह्लीं हूँ मातंगे फट् स्वाहा।

 

दशवीं ज्योति कमला प्रकटी। ( कमला )

ॐ अयोघ्नी शंकर ॐ कार रूप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरूप। हाथ में सोने का कलश मुख से अभय मुद्रा। श्वेतवर्ण सेवा पूजा करें, नारद इन्द्र। देवी देवतायें दे किया जय ओंकार। कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चमकमक चीनी फकतl तिल गुग्गल सहस्त्र कमलों का किया हवन करें गौरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पदखान गंगा गौरजा पार्वती जान। जिसमें की तीन लोक में भय मचा। कमला देवी के चरण कमल को आदेश।

मंत्र

ॐ ह्रीं क्लीं कमला देवी फट् स्वाहा:

सुनो पार्वती हम मस्तरूद्र पूजा, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी यापना थापी योनि का योग, दस विधा शक्तिवानों, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो। सिद्ध योगी मस्तम से जपे तिसको प्रसन्न भये महाकालिका। योगी योग विजय के प्राप्त। उसे वरद भवभयेनी माता। सिंहासन सिद्ध, भय शमशानी तिसको संग बैठे बगलामुखी। जोति भीतर दर्शन कर कर जानी, खुल गया ताला बृह्माण्ड भैरवी। नवमी स्थान उड्डियान बासी मनिजूर गुरु में बैठी, छिन्नमस्ता रानी। ऊँकार ध्यान लगाय त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुदक्षिणी। पाताल जोगिनी (कुण्डलिनी) गंगा को चढ़ी, जब पर बैठे त्रिपुर सुन्दरी। अग्नि मोड़े, निद्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावती करै। हंसों सों देवी मांगों का आवाहनमन जपे जो कमला देवी की धूनी तिसकी सिद्धि से भयंकर डर। जो इष्टध्यान का सुमिरन करै पाप पुष्प से न्यारे रहे। योग अभ्यास से सिद्ध अनजान निवर्तते। मन पड़े सो नर अमर लोक में जाये। इतना दस महाविद्या मन्त्र जपे सम्पूर्ण भया। अनन्त कोटि सिद्धों में, गौदरेय न्यायकक्ष की अनुपान जपे, अलखपुर पर्वत पर श्री शम्भुनाथ गुरु गौरलेखाय जी पे पढ़ कर सुनाया श्री बाघेश्वरी गुजर्नी की आदेश। आदेश।

 

 

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