निम्नलिखित केतु के उपाय लाल किताब बहुत प्रभावशाली है। कुदरती टोटके जो मनुष्य पढ़कर खुद करेगा उसी का कार्य पूर्ण होगा और जो दूसरे को पढ़कर बतायेगा जिसको बतायेगा उसका कार्य नहीं होगा, जो पढ़ेगा और बिना किसी व्यक्ति को बताये करेगा उसी का कार्य सम्पूर्ण होगा।
Tantramantra.in एक विचित्र वेबसाइट है जो की आपके लिए प्राचीन तंत्र मंत्र सिद्धियाँ टोन टोटके पुरे विधि विधान के साथ लाती है. TantraMantra.in कहता है सभी तांत्रिक मित्रों को इन कार्यविधियों को गुरु के मध्य नज़र ही करना चाहिये। तथा इन इलमो को केवल अच्छे कार्य में ही इस्तेमाल करना चाहिए, अन्यथा आपको इसके बुरे परिणाम का सामना खुद ही करना होगा ।
निम्नलिखित तंत्र मंत्र प्राचीन तंत्र मंत्र साहित्यो से लिए गए हैं! जैसे इंद्रजाल, लाल किताब, शाबर मंत्र संग्रह इत्यादि|
Table of Contents
Toggleसरल एवं अचूक केतु के उपाय लाल किताब
- केसर का तिलक लगाय।
- गले में सोना धारण करे।
- मन को शांत करने के लिए किसी भी रूप में चांदी धारण करे।
- छोटी कन्याओ के सेवा करे।
- कुत्ते को रोटी खिलाये।
- पति पत्नी आपस में झगड़ा न करे।
- गणेश जी की पूजा करे।
- चितकबरे रंग का कम्बल दान करे।
- घर में कुत्ता पाले।
- कान में सोना पहने।
राहु को अनुकूल करने के सरल एवं अचूक टोटके
जब केतु ग्रह अनिष्ट या प्रतिकूल प्रभाव कर रहा हो तो उसे अनुकूल करने या उसके अनिष्ट प्रभाव को दूर करने के लिए निम्न टोटकों के उपाय करने आवश्यक हैं
1. चांदी से बने ताबीज में असगंध की जड़ को सूत से बने नीले रंग के धागे के साथ पहनना चाहिए। यह कार्य केवल बृहस्पतिवार के दिन प्रात:काल में ही करना चाहिए।
2. मंगलवार या शनिवार के दिन मध्याह के समय रांगे (सीसे) की अंगूठी अध्यमा उंगली में घारण करना ठीक रहता है। केतु भी राहु ही की भांति छाया ग्रह है। इसे शांत करने के लिए शुक्रवार से मंत्र का जप किया जाता है।
मंत्र
ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रों स: केतवे नम:।
विशेष – टोटकों में प्रयुक्त होने वाली किसी भी वनस्पति को लाने से पूर्व उसके पौधे को नियमानुसार निमंत्रण देकर विधि-विधान से ही प्राप्त करना चाहिए।
केतु के अनिष्ट प्रभाव का निवारण
केतु जब कुंडली में अनिष्टकारी स्थिति में हो तो कुत्तों को भोजन कराना लाभप्रद रहेगा (केतु को कुत्ता माना गया है)। लाल किताब के लेखक ने केतु की दान की वस्तुओं में तिल को भी सम्मिलित किया है।
श्री गणेश जी केतु के देवता माने गए हैं। केतु के अनिष्ट होने पर यदि लड़के का व्यवहार शुभ न हो तो धर्म मंदिर में कंबलका दान देने से केतु का अनिष्ट प्रभाव दूर हो जाता है। यदि व में या पेशाब में किसी प्रकार का कष्ट हो तो शुद्ध रेशम का सफेद धागा तथा चांदी की अंगूठी, मोती आदि की वस्तुओं को धारण करना लाभप्रद रहता है।
राहु की भांति केतु भी छाया ग्रह है। इसको बलवान् करने का कोई ओचित्य नहीं है। यद्यपि जब इन शुभ ग्रहों अथवा योग कारक ग्रहों का युति अथवा दृष्टि द्वार प्रभाव पड़ रहा हो तो देखना चाहिए कि वो प्रभाव अत्यल्प तो नहीं है?
यदि अत्यल्प है, तो उस प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। अथार्थ शुभ अथवा योगकारक ग्रह की शक्ति को उससे संबंधित रत्न को पहनकर (धारण करके) बढ़ाना चाहिए या फिर जब राहु व केतु पर मंगल, शनि आदि पापी ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा हो और राहु की दृष्टि आदि से अनिष्ट उत्पन्न हो रहा हो तो फिर सब पापी ग्रहों का उपाय करना चाहिए।
राहु और केतु की उत्पति कैसे हुई
केतु का पौराणिक दृष्टिकोण केवल यही है कि समुद्र-मंथन के समय राहु ने देवरूप धारण कर अमृतपान किया और फलस्वरूप बिष्णु जी ने अपने चक्र से उसका सिर काट डाला। किन्तु अमृत पीने के कारण राहु का शरीर जीवित रहा। उसी समय से धड़ का ऊपरी भाग और गरदन से नीचे का भाग केतु के नाम से विख्यात हुआ।
केतु कौन सी राशि का स्वामी है
केतु अत्यंत बलवान और मोक्षप्रद माना जाता है। मेष राशि का यह स्वामी है। इसका विशेषाधिकार पैरों के तलवों पर रहता है। यह नपुंसकलिंगी और तामस स्वभाव का है। इसका उच्च स्थान मेष और नीच स्थान वृश्चिक है। यह बृहस्पति के साथ सात्विक तथा चंद्र एवं सूर्य के साथ शत्रुवत व्यवहार करता है,
तथा अपने स्थान से सप्तम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है। कुंडली में यह सदैव राहु से सातवें स्थान पर रहता है। इसकी विशेत्तरी दशा सात वर्ष करे मानी गई है। केतु की मित्र राशियां मिथुन, कन्या, घनु, मकर और मीन हैं तथा शत्रु कर्क, सिंह राशियां हैं। जातक की कुंडली में विभिन्न स्थितियों के अनुसार केतु ग्रह से भयानक एवं अद्भुत स्वप्न दर्शन, र्घटना तथा मृत्यु के शोक आदि का विचार किया जाता है।
केतु की अच्छी और बुरी दशा
केतु एक क्रूर ग्रह है। त्यचीय रोग आदि का कारक भी यही ग्रह ‘है। इसकी दशा में जातक को अचानक द्रव्य-प्राप्ति होती है। पुत्र एवं स्त्री लाभ होता है तथा साधारण रूप से आय बढ़ती है। नीच केतु की दशा में जातक कष्ट उठाता है तथा बंधुओं का विरोध सहने को विवश करता है। व्यसनों से वो स्वयं को दूसरों की दृष्टि में गिराता है। नवीन कार्यों के ‘शुभारंभ करने से उसे असफलता का मुंह देखना पड़ता है। स्त्री से हानि और व्यापार से लाभ’ पहुंचता है।
केतु के बारे में कुछ ख़ास जानकारियां
जब चन्द्र के साथ केतु मिलता है, तो चन्द्रग्रहण का समय होता है, जो अशुभ माना जाता है, किन्तु शुक्र और चन्द्र के मिलाप से केतु नीच हो जाता है, ऐसा नीच केतु बेटे और पौते को सूखा जैसी बीमारी देने वाला हो जाता है। बृहस्पति तथा मंगल के न होने की दशा में यह अच्छे असर वाला साबित होता है। केतु कितना ही मन्दा क्यों न हो, चारपाई का इस्तेमाल मन्दा ‘फल नहीं देता। बच्चे के जन्म के समय लोहे के पलंग आदि का नहीं,वरन् चारपाई का इस्तेमाल किया जाए, तो बहुत अच्छा रहता है।
केतु का शुभ/अशुभ प्रभाव
1 राह और केतु का फल ज्योतिषशास्त्र में शनि और मंगल की भांति कहा है, अत: जब शनि के साथ राहु भी पीड़ित हो और शनि को बलांवित करना अभीष्ट हो तो राहु भी बलवान किया जाना चाहिए, अन्यथा नहीं। इसी प्रकार जब मंगल को बलवान करना अभीष्ट होऔर केतु भी मंगल की भांति कार्य कर रहा हो तो केतु को भी बलवान किया जाना चाहिए।
2 उदाहरण के लिए मान लीजिए कि लग्नाधिपति शनि पर मंगल और केतु की दृष्टि है और इस पीड़ा के फलस्वरूप शनि स्तायु रोग दे रहा. है जो ऐसी स्थिति में राहु को बलवान् करने के लिए गोमेद धारण किया जा सकता है, क्योंकि शनि और राहु दोनों स्नायु का प्रतिनिधित्व करते हैं। मान लीजिए, मंगल
लग्लेश (लग्न का स्वामी) तथा चंद्रलग्न का स्वामी होकर ‘शनि तथा राहु की दृष्टि में है और मंगल को बलवान् करना इसलिए आवश्यक है कि हम चाहते हैं कि जातक पुलिस के महकमे में नौकरी पाए, तो ऐसी हालत में मंगल के साथ केतु को भी बलवान किया जा सकता है और तब लहसुनिया धारण किया जा सकता है।
3 साधारण रूप-से राहु/केतु की दृष्टि में पापत्व होने के कारण इनकी दृष्टि अनिष्ट करती है। ऐसी स्थिति में इनके रत्न धारण नहीं करवाने चाहिए। जैसे किसी व्यक्ति की लग्न वृष है और शुक्र व चंद्र दूसरे घर में, सूर्य/केतु चौथे और राहु दसवें घर में है तो ऐसी दशा में राहु की दृष्टि लग्न के स्वामी चंद्र और सूर्य सभी स्वास्थ्य घोतक अंगों पर होने के कारण राहु जातक को वायुदर्द गठिया आदि देगा। अतः राहु को उसका रत्न गोमेद धारण करके ‘बलवान करना चाहिए, ताकि रोग आगे न बढ़े, अर्थात् उसका शमन हो जाए।
4 केतु मंगल की भांति ही एक अग्नि ग्रह है और इसकी दृष्टि में भी आग है, विशेषतया जब इस पर अग्नि घोतक ग्रहों (सूर्य अथवा मंगल) का अभाव हो। सूर्य और केतु दोनों जहां पापी हैं, वहां ये दोनों ग्रह अग्नि का रूप हैं। जहां इनकी युति अथवा दृष्टि द्वारा प्रभाव पड़ेगा उससे पृथक्ता की संभावना होगी और उस अंग का अग्नि से जल जाना भी संभावित होगा, जैसे धनु लग्न हो और सूर्य व केतु कुंडली के पांचवें घर में इकट्ठे हों तो इन ग्रहों का प्रभाव पांचवे और नौवें,
ग्यारहवें और पहले घर पर पड़ेगा। पांचवे घर की स्थिति में गर्भ की हानि होगी। घर पर दृष्टि पिता से पृथकता लाएगी। ग्यारहवें घर पर दृस्टि बड़े भाई से वैमनस्य उत्पन्न करेगी। लग्न पर इनकी दृष्टि शरीर में आग लगा देगी, विशेषतया जबकि मंगल कहीं भी बैठकर लग्न तथा चंद्र पर अपना प्रभाव डाल रहा हो।
अगर आपको 11 केतु के उपाय लाल किताब पसंद आई हो तो कृपया निचे कमेंट करें अथवा शेयर करें।
यह भी पढ़े:-
- राहु के लक्षण और उपाय
- शनि को तुरंत खुश करने के उपाय
- मंगल ग्रह का प्रभाव और उपाय
- शुक्र ग्रह को मजबूत करने के उपाय लाल किताब
- केतु ग्रह मंत्र