8 काल भैरव सिद्धि मंत्र | प्राचीन भैरव मंत्र | काल भैरव का इतिहास - Tantra Mantra

8 काल भैरव सिद्धि मंत्र | प्राचीन भैरव मंत्र | काल भैरव का इतिहास

काल भैरव सिद्धि मंत्र | महाकाल भैरव मंत्र
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निम्न लिखित 8 काल भैरव सिद्धि मंत्र | महाकाल भैरव मंत्र लिस्ट | काल भैरव का इतिहास बहुत प्रभावशाली है। Tantramantra.in एक विचित्र वेबसाइट है जो की आपके लिए प्राचीन तंत्र मंत्र सिद्धियाँ टोन टोटके पुरे विधि विधान के साथ लाती है. TantraMantra.in कहता है सभी तांत्रिक मित्रों को इन कार्यविधियों को गुरु के मध्य नज़र ही करना चाहिये। तथा इन इलमो को केवल अच्छे कार्य में ही इस्तेमाल करना चाहिए, अन्यथा आपको इसके बुरे परिणाम का सामना खुद ही करना होगा ।

कुदरती टोटके जो मनुष्य पढ़कर खुद करेगा उसी का कार्य पूर्ण होगा और जो दूसरे को पढ़कर बतायेगा जिसको बतायेगा उसका कार्य नहीं होगा, जो पढ़ेगा और बिना किसी व्यक्ति को बताये करेगा उसी का कार्य सम्पूर्ण होगा।

निम्नलिखित तंत्र मंत्र प्राचीन तंत्र मंत्र साहित्यो से लिए गए हैं! जैसे इंद्रजाल, लाल किताब, शाबर मंत्र संग्रह इत्यादि|

भैरव नाथ जी

भैरव नाथ जी को शिव जी का ही अंश कहा जाता है। मुख्य रूप से भैरव जी के दो रूप बहुत परषिद है। काल भैरव और बटुक भैरव

भटुक भैरव

इन्हे भैरव जी का बाल रूप भी माना जाता है। भटुक भैरव जी को साधवीक भोग चढ़ता है। जैसे की दूध और रोट आदि। इनकी पूजा की विधि सरल होती है। इनका दिन रविवार माना जाता है। इनकी नियंतर अराधना से सभी जीवन सुख , लम्बी आयु , निरोग शरीर, मान-सम्मान और ऊचा पद मिलता है।

काल भैरव

इन्हे कासी का कोतवाल भी कहा जाता है। इस रूप को भैरव का सबसे शक्तिशाली रूप माना जाता है। भक्त इन्हे तामसिक भोग अर्पित करते है। जैसे की मॉस मदिरा आदि। इनका दिन रविवार होता है। इनकी साधना कठिन होती है। इनकी भक्ति से जातक का भय दूर होता है। ये सदा ही अपने भक्तो की रक्षा करते है। ये अपने भगत के बड़े से बड़े कष्ट कुछ ही समय में दूर कर देते है।

काल भैरव सिद्धि मंत्र एवं साधना

विधि – काल भैरव सिद्धि मंत्र का जप अपने गुरु की आज्ञा ले के ही करनी चाहिये। भैरो बाबा की साधना करने के लिए चालीस दिन शनिवार के व्रत करने होंगे या फिर नौ करके उसका उद्यापन करके फिर नौ करें इस तरह से चार बार नौ-नौ करके उद्यापन करो और जो भी दुखी भूखा कपड़े नहीं हो ऐसे मनुष्य की सेवा करो क्योंकि भेरो बाबा इन्हीं मनुष्यों में वास करते हैं और बीज मन्त्र का नियम से 3 तीन माला करो फिर पाँच करो और फिर मनन करो उसके बाद भैरो बाबा अपने आप मार्गदर्शन करेंगे।

मंत्र:
जय मैरो षाष्टायाम
करियन्ति करियन्ति भूतादि
शमशानादि पछन्ति
भक्षादि भक्षादि करियन्ति
धर्मस्य धर्मस्य कदाचित
भवति भव: भव:

नमस्ते नमस्ते शिवम्‌ अवतारण
कार्मशीयामी मार्क शीयामी कर्मणे
भवति सागर तारमणे
धुप द्वीप चढावते
ग्रह ग्रह प्रवेशन्ति
देव देव नम:
इति सिद्धम्‌

कार्य सिद्धि भैरव मंत्र

उपदेस –काल भैरव सिद्धि मंत्र का जप अपने गुरु की आज्ञा ले के ही करनी चाहिये। सर्व कार्य सिद्ध करने वाला यह मंत्र अत्यन्त गुप्त और अत्यन्त प्रभावजनक हैं। मंत्रवेत्ता लोग इस मंत्र द्वारा संसार के अनेकानेक कार्य सिद्ध किया करते हैं। यह रामबाण है परंतू बुरे कामों में प्रयोग नहीं करना चाहिए। परोपकार के लिए इसे मंत्र की सहायता लेने वाले इस लोक में यश और परलोक में सद्‌गति प्राप्त करते हैं।

मंत्र – ओम गुर ओम गुर ओम गुर ओंकार ओम गुरु भुमसान । ओम
गुरु सत्य गुरु ,सत्य नाम काल भैरव कामरु जटा चार पहर खोले 
चोपटा बैठे नगर मे सुभरो तोय दृष्टि बांध दे सबकी । मोय हनुमान चले
हथेली, भैरव बसे कपाल। नरसिंह जी की मोहिनी मोहे सकल सकल

संसार। भूत मोहूं प्रेत मोहूं जिन्द मोहूं मसान मोहूं घर का मोहूं बाहर का.
मोहूं बमरक्क्स मोहूं कोढ़ा मोहूं अघोरो मोहूं दूती मोहूं दुमनी मोहूँ नगर 
मोहूं घेरा मोहूं जादू टोना मोहूं डंकणी मोहूं संकणी मोहूं बात का बटोही
मोहूं पनघट की पनिहारी मोहू इन्द्र का इन्द्रासन मोहूं गददी बैठा राजा,

मोहूं गद्दी बैठा बणिया मोहूं आसन बैठा योगी मोहूं और को देखे जले
भुने मोय देखके पायन परे जो कोई काटे मेरा वाचा अंधकार लूला कर
सिड़ी बोरा कर अगनि में जलाय दे, धरी को बताय दे, गढ़ी को बताय
दे, खोये को मिलाय दे, रूठे को मनाय दे, दुष्ट को सताय दे, मित्रों को

‘बढ़ाय दे। वाचा छोड़ कुवाचा चले तो माता का चोखा दूध हराम करे।
हतुमान की आण, गुरुन को प्रणाम, ब्रह्म विष्णु साख भरे उनको भी
सलाम, लोना चमारी की आन, माता गौरा पार्वती महादेव जी की आन,
सीता रामचन्द्रजी कौ आन, गुरु गोरखनाथ की आन, मेरी भक्ति गुरु की
शक्ति गुरु के वचन से चले तो मंत्र ईश्वरो वाचा।.

साथना एवं प्रयोग विधि – रविवार को पीपल के नीचे अर्धरात्रि के समय ही जाना है , साथ में शुद्ध केसर लौंग सिन्दूर,शक्कर, उत्तम गुग्गुल, पंचमेवा, शराब, सिन्दूर लपेटा नारियल, सवागज लाल कपड़ा, आसन के  लिये, चन्दन का बुरादा एवं लाल लूंगी वस्तुये ले जानी चाहिए। इस मंत्र का  प्रतिदिन 108 जाप करना होता है। पहले पूजन करे, धूप देकर सब समामान अर्पित करे लाल लुंगी स्वयं पहने। पीपल के नौचे चौका लगाकर पूजा करे। साथ में तलवार और लालटेन रखनी चाहिए।

यह मंत्र इक्कोस दिन में सिद्ध हो जाता है। यदि कोई कौतुक दिखाई पड़े तो डरना नहीं चाहिए  । अन्त में भैरव का दर्शन होगा, उसी समय मंत्र की सिद्धि समझना चाहिए। मंत्र सिद्ध होने पर जब भी उपयोग में लाना होतब आग पर धूप डालकर तीन बार मन्त्र ‘पढ़ने पर कार्य सिद्ध होगा। ऊपर जहाँ चौके के बारे में बताया गया है, उसका अर्थ यह है कि पीली मिट्टी से चौके लगाओ। चार चौकिया अलग – अलग बनाओ । पहली धूनी गुरु की, फिर हनुमान की, फिर भैरव की, फिर नरसिंह की। यह चारों चौकों में कायम करो।

आग रखकर चारों में हवन करो। गुरु को पूजा में गूगल नहीं डाले। नरसिंह की धूनी में नाहरी के फूल एवं शराब और भैरव की धूनी में केवल शराब डाले। भैरव के अनेक रूप हैं जैसे काल भैरव, महा भैरव, श्मशान भैरव, स्वर्ण भैरव, बाल भैरव आदि। बाल भैरव को बटुक भैरव के नाम से भी सम्बोधित किया जाता. है। सात्विक साधना के साधक के लिए बाल भैरव की साधना अधिक सहज व उपयोगी है।

भूतनाथ काल भैरव सिद्धि मंत्र

 

भारायण भारायण तारमणे
भुतनाथ काल मैरव
करियन्ति करियन्ति
भुजगेन्द्र हारम पारवितम्‌ काल निरमामी
काल निद्वुक्षाणियम्‌ चौसठ भवन सोलह कला बाजुनि
सैहिष्णुयाणि काल भिरूयायी भक्षणये
जामोनितर जामोनितर वावन भेदिनि ,
काल चक्र जामिनि जामिनि,
नमस्ते नमस्ते काल मैरव शिवम्‌ अवतारण नम: नम:
इति सिद्धम्‌

क्रोध भैरवाय नम: भैरवी नम:  मन्त्र

 

आरक्षीयाणी भस्वमि,
भूतादि भैरवी ब्रह्मा विष्णु रुद्र
कलाक्षी निर्माणी भैरवी जगत उध्धारणम्‌
कलह कलह वस्तु निर्माणी ,
भुतादि भैरवी जगत निर्माणी
कुसुमलता निमर्मता कुलकर्णी
भैरवी याक्ष नम: भैरवी नम:
इति सिद्धम्‌

देवाताय भूतगण क्रोध भैरवी गोपनीय मन्त्र

 

सैहस्त्रयामि सैहस्त्रयामि , सर्वयामि सर्वयामि
फट्‌ फट्‌ कलाक्षी अमरावति जोगिनि जोगिनि
भिरूयामी जननी जाग्रति, नम: नम: नम:

क्रोध भैरव मृत संजीवनी मन्त्र

 

भानू सूर्य हूँ हूँ नम:जन्म दादिनि पूर्वा अस्ती नम:काल क्रोधितम्‌ भैरव नमःयशस्वनी नमः जन्म निधार नम:इति सिद्धम्‌

बज क्रोधं भैरव नम:

 

क्रान्तिभुषणम्‌ बजक्रोधितम्‌ भैरव नम:त्रिलोक मणी यशुन्धरा घारणीकिकम्‌ देवधिपतिबर्ज पतितम्‌ अंग अष्ट देवी देव, धारणीयम नम:बर्ज पाणिनी,, पृथ्वी संसारम्‌ संहारम्‌काल भैरव बर्ज क्रोघितम्‌ नम:सत्यपातक आमुषणम्‌ नम:सत्य प्रकासितम्‌ आत्मा प्रशादितम नमःजय बर्ज काल , क्रोधितम ,  भैरव  नम :।इति सिद्धम्‌

क्रोध भैरव मन्त्र

 

क्रोध भैरव जुं जु जागरणु
क्रोध भैरवाय : सैहस्त्र भुजाएं आरिक्षिणियम :
विस्तारम्‌ मणी अंक अष्ठ अंकततिकम्‌
ब्रह्मा विष्णु महेश्वरम्‌ एकम दिशम वाहनम्‌
परिफुल्लितम्‌ जगत: क्रौध भैरवाय नमन:

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