सूर्य मंत्र | सूर्य ग्रह के लक्षण और उपाय 10 |

सूर्य मंत्र | सूर्य ग्रह के लक्षण और उपाय 10 |

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कुदरती टोटके जो मनुष्य पढ़कर खुद करेगा उसी का कार्य पूर्ण होगा और जो दूसरे को पढ़कर बतायेगा जिसको बतायेगा उसका कार्य नहीं होगा, जो पढ़ेगा और बिना किसी व्यक्ति को बताये करेगा उसी का कार्य सम्पूर्ण होगा।

निम्नलिखित तंत्र मंत्र प्राचीन तंत्र मंत्र साहित्यो से लिए गए हैं! जैसे इंद्रजाल, लाल किताब, शाबर मंत्र संग्रह इत्यादि|

सूर्य देव को अनुकूल करने के 10 अचुक उपाय

  • गुड़ और चावल जल में प्रवाहित करे। 
  • चावल दूध का दान करे। 
  • अन्धो को भोजन कराये। 
  • लड़किया और औरतो का मानसम्मान करे। 
  • गाय की सेवा करे। 
  • दरिया में गुड़ बहाये। 
  • नदी या दरिया में ताम्बे का सिक्का डालना लाभदायक रहेगा। 
  • सदा धर्म का पालन करे। 
  • चंद्र को  मजबूत करे। (चंद्र सदा ही सूर्य की मदद करता है। 
  • रोजाना सूर्य देव को जल अर्पित करे। 

सूर्य मंत्र सूर्य को अनुकूल करने के अचूक टोटके

सूर्य देव को सूर्य मंत्र द्वारा अनुकूल करने के अचूक टोटके

1.  प्रतिकूल या अनिष्ट ग्रह सूर्य को अपने अनुकूल बनाने के लिए किसी भी रविवार के दिन बेल की जड़ का छोटा हिस्सा सोने के ताबीज में रखकर सूत के बने गुलाबी रंग के धागे के सहारे दाहिनी भुजा में धारण करें।

2. सूर्य ग्रह को अनुकूल करने के लिए रविवार को प्रातःकाल सूर्योदय के समय गाय के दूध और सुध गाय की घी में, तांबे की अंगूठी को स्नान कराकर ‘उसे अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।साथ ही सूर्य के मंत्र का जप भी करना चाहिए। 

मंत्र 

ओम्‌ आकृष्णेन रजसा वर्तमानों निवेशवयन्नमंत 

मत्यंच। हिरण्येन सवितारथेन देवों याति

भुवनानि पश्यन्‌ सूर्याय नम:

विशेष – सूर्य देव को प्रसन्‍त करने के लिए भगवान विष्णु का पूजन और हरिवंश पुराण की कथा कौ व्यवस्था करनी चाहिए।

सूर्य देव किसके वंशज थे। 

सूर्य को महर्षि कश्यप का वंशज होने के नाते कश्यप गोत्रीय कहा जाता है तथा सूर्य को ग्रह शनि का पिता भी माना जाता है। इसका अधिकार आमाशय ‘पर रहता है और यह पेट-संबंधी विकृतियों का परिचालन करता है। यह सिंह राशि का स्वामी है। यह पुल्लिंग और राजस गुणवाला है। इसका ऊंचा स्थान

मेष और नीचा स्थान तुला है। सूर्य का बृहस्पति के साथ सात्त्विक, चंद्र के साथ राजस और मंगल के साथ तामस व्यवहार रहता है। शनि, शुक्र, राहु और केतु के साथ उसकी खास दुश्मनी है। कुंडली में अपने से सातवें घर को पूरी दृष्टि से देखता है। विंशोत्तरी दशा के अनुसार सूर्य की महादशा 6 वर्ष की होती है। कुंडली में सूर्य की स्थिति घर के अनुसार आंकी जाती है। यह मेष, वृश्चिक तथा धनु लग्नों में योगकारक होता है।

सूर्य देव के शुभ और अशुभ फल। 

तामस स्वभाव के कारण सूर्य, मंगल, केतु, शनि और राहु के साथ अनिष्ट फलप्रद होता है। विवाह यात्रा, मांगलिक कार्यों और व्यापार के लिए सूर्य का विशेष अध्ययन किया जाता है। सूर्य कौ महादशा में जातक की पदवृद्धि होती है, उसके विदेश जाने के योग भी बनते हैं। व्यापार आदि कार्यों में सफेद वस्तु के

व्यापार से अच्छा लाभ होता है। इस दशा में जातक धर्मादि कार्यों में रुचि लेता है तथा समाज में भी उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। किन्तु नीच राशि का सूर्य जातक की कुंडली में पड़ा होता है तो उसकी दशा में जातक का धन व्यय होता है, तथा उस पर कर्जा बढ़ा रहता है। साथ हो उसे अनेक प्रकार की व्याधियां भी सताती रहती हैं और परिवार वाले एक-एक कर भिछडते रहते हैं। पुत्र आदि से कलह रहती है।

यदि वर्ष का स्वामी पूर्णबली सूर्य हो तो उस वर्ष जातक को मान-प्रतिष्ठा, धन, पुत्रलाभ और कूदुंबियों से सुख मिलता है। राज्य पद में अतिष्ठा बढ़ती है और मकान संबंधी कार्यों से लाभ पहुंचता है। स्वास्थ्य अच्छा रहता है और अचानक द्रव्यप्राप्ति का योग होता है; किन्तु यदि सूर्य मध्यबली हो तो जातक को अल्प

सुख मिलता है। परिवार में कलह बढ़ती है और नौकरी में हो तो स्थान बदलने का अवसर प्राप्त करता है। ससुराल पक्ष से लाभ मिलता है। यदि वर्षेश अल्पबली अथवा शून्यबली हो तो जातक को व्यर्थ ही घुमक्क़ड़ जीवन बिताना पड़ता है। समाज में अपयश फैलता है और आलस्य के कारण सोचे हुए कार्य रुक जाते हैं।यही नहीं, व्यर्थ ही भोग-विलास में धन का अधिक व्यय हो जाता है।

सूर्य के अनिष्ट प्रभाव का निवारण

1. सूर्यादि अनिष्ट ग्रहों के उपाय के संदर्भ में किस ग्रह से कौन-सी वस्तु संबंधित है, जिसका दानादि लाभप्रद सिद्ध हो सकता है, यह ज्ञान अत्यावश्यक है। इसलिए ग्रहों का कारकत्व जानना अपेक्षित है। सूर्य हृदय का द्योतक है। यदि जन्मकुंडली में सूर्य अथवा इसको राशि ‘पर राहु का प्रभाव हो तो हृदय गतिरोध की संभावना रहती है, विशेषता तब जबकि कुंडली का पांचवां घर और उसका मालिक भी राहु के प्रभाव में हो। ऐसी हालत में सूर्य को बलवान्‌ करना होता है और राहु की पूजा अभीष्ट होती है।

2. ग्रहों की शांति का एक मौलिक नियम यह है कि जिस ग्रह पर पाप प्रभाव पड़ रहा है और उसको बलवान किया जाना अभीष्ट है, उससे संबंधित रत्नादि को तो धारण किया जाए और जो ग्रह अपनी युति अथवा दृष्टि से पीड़ा प्रदान कर रहा है, उस ग्रह की पूजा आदि के द्वारा शांति कराई जाए। मान लीजिए, किसी कुंडली में सूर्य शत्रु राशि के दूसरे घर में मौजूद है, उसको मंगल ग्यारहवें घर में ठहर होकर अपनी चौथी दृष्टि से असर कर रहा है तो ऐसी स्थिति में सूर्य पीड़ायुक्त होगा और मंगल पीड़ा देने वाला। अत: उन दोनों का निवारण आवश्यक है।

3.सूर्य अग्निरूप भी है। यह मंगल आदि ग्रहों से मिलकर लग्नों को पीड़ित कर सकता है। सूर्य एक पृथक्ताजतक और कलहकारी ग्रह भी है। अब यह किसी जन्मकुंडली के सातवें घर में शत्रु राशि का होकर मौजूद हो तो यह दाम्पत्य जीवन में कलह की सृष्टि कर स्त्री अथदा पुरुष से वियोग करवा देता है।

4. सूर्य पिता है, अत: यदि वो नौवें घर का स्वामी होता हुआ राहु तथा शनि के प्रभाव में हो तो पिता के कष्ट का घोतक होता है। सूर्य हड्डी का प्रतिनिधि है। जब यह ग्रह लग्नेश होकर चौथे घर में पीड़ित हो तो हड्डी का योग बनता है। इसी प्रकार पांचवें घर में स्थित हुआ सूर्य गर्भ की हानि करता है।

5. जब सूर्य जन्मकुंडली में बुरी स्थिति में पड़ा हो और सूर्य द्वारा प्रदर्शित बातों से हानि हो रही हो, जैसे दिल को कष्ट हो, राजदरबार से परेशानी हो,आंखों में तकलीफ हो, दिल का दौरा हो, पेट में रोग हों, हड्डियों की कोई कष्ट हो तो उस समय गुड़ का दान, गेहूं, तांबा दान करना लाभदायक रहता है।

6. सूर्य भगवान विष्णु का रूप है। इसलिए हरिवंश पुराण की कथा से सूर्य द्वारा उत्पादित दुःखों कौ निवृत्ति ही कही है। लाल किताब के लेखक के मुताबिक जिसका सूर्य मजबूत होता है, वो नमक का सेवन तनिक करता है, दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जो लोग नमक ज्यादा खाते हैं, उनका सूर्य निश्चय ही कमजोर होता है।

7. सूर्य सातवें घर में प्राय: बुरा माना गया है। कारण संभवतया यही है कि सातवें घर में प्राकृतिक रूप-से तुला राशि है जो कि सूर्य के लिए नीच राशि है। ऐसी स्थिति में यदि सूर्य सातवें घर में स्थित होकर बुरा फल कर रहा हो तो एक टोटका दिया है कि रात के समय आग को दूध से बुझाओ। भाव यह प्रतीत होता है कि अग्नि रूप सूर्य को उसके मित्र दूध रूप चंद्रमा ‘की सहयोग प्राप्त होती है।

8. इसी प्रकार सूर्य के उस सातवें भाव में स्थिति के दशा-परिणाम की ‘निराकृति के लिए एक टोटका है कि व्यक्ति मुंह में मीठा डालकर ऊपर से पानी पिया.करे। लाल किताब के लेखक के बारे में मंगल ‘का संबंध मीठे शहद आदि से है। मीठे और पानी के उक्त प्रयोग का मतलब होगा कि व्यक्ति चंद्र (पानी) और मंगल (मीठा) का उपयोगइस्तेमाल कर सूर्य के मित्रों चंद्र और मंगल की सहयोग लेकर सूर्य के द्वारा उत्पादित दुःख से मुक्ति दिलाता है।  

9. यदि सूर्य कुंडली के दसवें घर में हो और पीड़ित होकर अपनी संबंधित वस्तुओ आदि द्वारा कष्ट पहुंचा रहा हो तो टोटका दिया कि चलते पानी में तांबे का पैसा बहा देना अच्छा होगा। यहां यह सिद्धांत कार्य करता है कि जो ग्रह पीड़ित हो, उससे संबंधित धातु आदि वस्तु का दान करना चाहिए। से संबंधित और के अलावा तांबा भी है, अतः तांबे का सिक्का पानी में बहा देने के बारे में कहा जाता है कि चलते पानी में सिक्का बहा देने का आश्रय सिर्फ यही है कोई शक्ति हमसे हमारे दुखो को दूर बहा ले जा रही है।

कुछ ख़ास जानकारियां  

जन्मकुण्डली के जिस घर में सूर्य होगा, उस घर से सम्बन्ध रखने  वाली वस्तुओं पर यह मंदा असर करता है, मित्रों के मिलने से इसकी शक्ति अधिक हो जाती है,किन्तु शत्रुओं के मिलाप से इसका फल क्षीण हो जाता है। डर ‘का साथ होने पर एक ओर जहाँ सूर्य को महानता और ताकत मिलती  वहीं दूसरी ओर बुध का अशुभ फल भी सूर्य के मिलाप से दूर हो जाता है। जिस जातक का सूर्य शुभ राशि 1,4,5,8,9,12 में होगा, वो हजस्वी, प्रतापी और शत्रु-नाशक होता है। यदि वह अशुभ राशि में हो, तो जातक क्रोधी, दूसरों का अहित करने वाला और नीच प्रकृति का होता है।

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