रुद्राक्ष को शुद्ध कैसे करें ? Updated रुद्राक्ष धारण करने की विधि 2024

रुद्राक्ष को शुद्ध कैसे करें | रुद्राक्ष धारण करने की विधि

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रुद्राक्ष धारण करना भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे भगवान शिव का आशीर्वाद माना जाता है और इसे धारण करने से व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। लेकिन रुद्राक्ष को धारण करने से पहले उसकी शुद्धि करना आवश्यक है। इस ब्लॉग में हम रुद्राक्ष को शुद्ध करने की विधि और उसे धारण करने की सही प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

Table of Contents

रुद्राक्ष को शुद्ध करने की विधि

1. शुद्ध जल से धुलाई

रुद्राक्ष को सबसे पहले शुद्ध जल से धोना चाहिए। इससे उस पर लगे धूल-मिट्टी और अन्य अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं।

2. दूध में डुबाना

रुद्राक्ष को शुद्ध करने के लिए उसे गाय के कच्चे दूध में कम से कम 2-3 घंटे तक डुबाकर रखना चाहिए। यह विधि रुद्राक्ष को ऊर्जा और पवित्रता प्रदान करती है।

3. गंगाजल से स्नान

दूध में डुबाने के बाद रुद्राक्ष को गंगाजल से स्नान कराना चाहिए। गंगाजल पवित्रता का प्रतीक है और इससे रुद्राक्ष की शुद्धि होती है।

4. पंचामृत से स्नान

रुद्राक्ष को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराना भी बहुत लाभकारी होता है। यह विधि रुद्राक्ष को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है।

5. धूप और दीप से शुद्धि

रुद्राक्ष को धूप और दीप दिखाकर उसकी शुद्धि करनी चाहिए। यह विधि रुद्राक्ष को नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त करती है।

रुद्राक्ष धारण करने की विधि

1. शुभ मुहूर्त का चयन

रुद्राक्ष धारण करने के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करना आवश्यक है। सोमवार या महाशिवरात्रि का दिन रुद्राक्ष धारण करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।

2. स्नान और शुद्धिकरण

रुद्राक्ष धारण करने से पहले स्वयं को शुद्ध करना चाहिए। इसके लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

3. मंत्र जाप

रुद्राक्ष धारण करने से पहले “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ रुद्राय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र जाप से रुद्राक्ष की ऊर्जा और प्रभाव बढ़ता है।

4. धूप और दीप दिखाना

रुद्राक्ष को धारण करने से पहले उसे धूप और दीप दिखाना चाहिए। इससे रुद्राक्ष की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।

5. रुद्राक्ष की माला पहनना

रुद्राक्ष की माला को अपने गले या हाथ में पहनें। इसे धारण करते समय भगवान शिव का ध्यान करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।

6. नियमित पूजा और देखभाल

रुद्राक्ष को धारण करने के बाद उसकी नियमित पूजा और देखभाल करनी चाहिए। इसे समय-समय पर गंगाजल से स्नान कराएं और मंत्र जाप करें।

रुद्राक्ष के लाभ

  • मानसिक शांति: रुद्राक्ष धारण करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और तनाव कम होता है।
  • शारीरिक स्वास्थ्य: रुद्राक्ष धारण करने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और बीमारियों से बचाव होता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: रुद्राक्ष धारण करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और ध्यान और साधना में सफलता मिलती है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मकता दूर होती है।

निष्कर्ष

रुद्राक्ष को शुद्ध करना और उसे सही विधि से धारण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन प्रक्रियाओं का पालन करके व्यक्ति रुद्राक्ष के सभी लाभ प्राप्त कर सकता है। रुद्राक्ष धारण करने से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है। रुद्राक्ष धारण करने की सही विधि अपनाकर हम भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सुखी और समृद्ध बना सकते हैं।

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न: रुद्राक्ष को शुद्ध कैसे करें? उत्तर: रुद्राक्ष को शुद्ध करने के लिए उसे शुद्ध जल, गाय के कच्चे दूध, गंगाजल, पंचामृत से स्नान कराना चाहिए और धूप और दीप दिखाना चाहिए।

प्रश्न: रुद्राक्ष धारण करने का शुभ मुहूर्त क्या है? उत्तर: रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार या महाशिवरात्रि का दिन सबसे शुभ माना जाता है।

प्रश्न: रुद्राक्ष धारण करने के क्या लाभ हैं? उत्तर: रुद्राक्ष धारण करने से मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

रुद्राक्ष को शुद्ध कैसे करें | रुद्राक्ष धारण करने की विधि

 

ॐ रोहणी रुद्राक्षी मनकरिन्द्री नम :
रुद्राक्षीयायाम्‌ गंड संसारम्‌ पारवितम्‌
फूल माला जडयायामी जयमीस्यामी
जमीस्यामी प्रलानी प्रलानी नम:
रुद्राक्षी बुटी सफलम्‌ करीयामी
मूर मूरगामी यशस्वी स्व:
ज्या वूटी मोरी वाणी बुंटी
दामिनी दामिमि स्व:
रमणी रमणी नम: नम:
इति सिद्धम्‌

गुर मंत्र 

 

गुरु मा्कितिम विभागमन प्रस्तुतिवियम्‌ नियमानुसरणम्‌
गुरु आदेश आदेश आदेश अलखा हाजण संसारम्‌
अलख निरंजन आदेश आदेश आदेश।
इति सिद्धम्‌

गुरु पाद पदम्‌

 

गुरुवा पादम निरिक्षयायाम्‌
धैर्यें: अस्ती पदम धारणीम
गुरुवाणी गुरुवाणी गुरु मुखम बोलिये
गुरु सत्य नम: सत्य नम:
गुरुम्‌ पादम्‌ नमस्तेते नमस्तेते
गुरुम मुखम्‌ बोलिए
गुरु वाणी गुरुवाणी
मुखारबिन्दम जानिये।
प्रथमा: गुरुनानक देव देवाय
नम: मानिये।
भीतरी वामी यशस्वी नमो नारायणी
भुजगेन्द्र हारम्‌ यतीन्द्र नमस्तेते :
गंगा जमना सरस्वती यथातिथि
ब्रह्म नारायणी जगत उत्त्पत्ति।

जय सरस्वती मन्त्र

 

जय सरस्वती नम :
जगत धारिणी , मनौ: मनौ: बस्यन्ति,
नर नारि: धारिणी, मन विचारिणी :
युगे युगे कर्मणे,
किरोश्यान्ति मन भस्मी धारिणी,
कारिणी, पार्वति रूपान्त्रित
नर नारी मन्‌ भस्मी किरोयामी सरस्वते नम:
संसार मनन भेदिनी , नर नारी,
मनन्‌ भेदिनी: सरस्वते : नम:
फलत: फलत : कार्यवन्ति,
निर्जीव वस्तुम फलामी फलामी,
मनन इति सिद्धिम: फलम: फलम: सरस्वते नम :
इति सिद्धम्‌

धरती माता का मन्त्र

 

धरती मात्रयामि यामि ग्रायत्रि फिरयामि
यथा, यथा, भूमे भुमेणीम संसार व्यापन,गर्भ धारिणी
संसार भारम ओढेयामि प्रकृति मात्र काकुलि मिरयामि , मिरयामि
भारयन्ति भारयन्ति श्यामला वस्त्रादि धारिणी पिताम्बर ओढेयामि
धरती माता धारिणी , उत्तपत्ति संहार करियन्ति
धर्म धर्मकी जय, जय माँ जय
इति सिद्धम्‌

आसन पर बैठना

 

आसन प्राणवियम आत्मा मिखार बिन्दम्‌
भुवनेश्वर प्रतिज्ञयम्‌ आसन मनौनितम
पिजेर्णियम्‌ प्रभु आगमन
जय महात्रिगुणम्‌ प्रमात्मम्‌

श्री गंगा माता आसन पर बैठने के लिए मन्त्र

 

जल मग्न माँ गंगे
धुरन्दर रास्ता दूर करो माँ माँ गंगे
कल्प तरु धरती तरू
उत्तरी माँ गंगे
शिव रूपिणी जगत धारिणी माँ गंगे
संसार को मुक्ति दिलाने वाली माँ गंगे
माँ गंगे आओ आओ
अपना दिया हुआ वचन पूरा करो माँ गंगे
जय , जय जय, माँ गंगे

श्री आसन बांधना

 

ॐ जय रघुनन्दन आसन पधारम
ब्रह्म विष्णु शिवम्‌ जगत धारणम :
सूर्य अग्नि पृथ्वी आकाश
‘जलम्‌ प्रकारम्‌
संसारम्‌ उध्धारणम : धर्म पारम
संसारम्‌ नर प्राणी जग धारणम :
कवच धारणीम भग वस्त्रा *
धारण अग्नि प्रविष्ष्श्यति
भूव: भूव: स्व: यतीन्द्र देवा
सम्भणी वाणी प्रयाग्या
विश्वामित्रा शिष्यम्‌
संसारम्‌ अवतारम धर्म पारम:
आगच्छन्ति आगच्छन्ति
कवच मणी उत्तीर्णम्‌
पधारम्‌ घरती धारण
युग पुरुष गावत प्रति संख्यम्‌ युग युगान्तरम्‌
आसन त्रिशुलम उत्तारणामो शीघ्रतम
नमो नमो : नम:
इति सिद्धम्‌

आसन बांधना

 

ॐ विष्णु भुततनात्वि चतुर्थ भुजा वाशिणी
दशम दिशा प्रणति पुज्य प्रति क्षणम संसारम
कलाक्षी कलयुगे भव: सागरम संसारम्‌
भवान्ति कलयुगे उच्चारणम्‌
त्रिलोकम तारागणम पुष्पागण संसारम्‌
काल भैरव प्रताक्तिवियम्‌ विमण पृथ्वी विक्याणम्‌
विकाल भैरव जन्म मृत्यु विज्यारणम्‌ पृथ्वी मापण संसारम
अधिपति विधायकम्‌
ॐ  जागपरियाणी , यान्त्रणी , ब्रह्मा विष्णु शिवम यान्त्रणी
भ्रगोयामी भूर्व : भूव : स्व: भज जगत नारायणी नारायणी
अवतरित भारत भूमेणी भूमेणी।
इति सिद्धम्‌

समाधि अवस्था ध्यान अवस्था

 

लक्ष्मण पक्ष धारिणीम्‌ राम नवम जगत धारिणीम्‌
शम्भु आदिनाथ प्रजायनि युगे युगे खकुंरी बाजत निश्चिन्ति 
ब्रह्मणी गावत नाचत खकुरी स्व्यमं आनन्दितम
कृष्णा अवतारम्‌ भज जगत नारायणी नारायणी
मध्य कालीन युग पुरुष गुरु गोरक्षनाथ गुरु को नमस्कार
सूक्ष्म रूप जगतधारि काल रूप असुर संहारि धरती गगन
पाताल तीनों लोक गावते प्रति संख्यक युगे युगे 
इति सिद्धम्‌

भूत प्रेत बुलवाने का मन्त्र

 

ॐ भूत रात्रि भुतिनि , डायन , आगच्छन्ति
मुखारियामिणी स्व: फट
बक: फट: इतरगामी फट बक फट्‌
बक फट्‌ चल हट्‌ बक फट्‌
इति सिद्धम्‌

शिव शंकर त्रिशूल बुलाने का मन्त्र

 

जय नारायणी जय नारायणी
भुजगेन्द्र नर भक्षयेणम
‘करियामि करियामि शिवम्‌
त्रिशूलम्‌ धरतीम्‌ उत्तारणमों
भेंजन नर भक्षणम्‌ पारवितम्‌
सज गमन दण्डम देदेयेतितम्‌
नर अधर्मी नर भक्षणम्‌
करियन्ति राक्षसे
मिश्यामि नाष्टम्‌ करियन्ति
जय संसारम्‌ सैहरियम्‌
धरती , भारम्‌ उतरयामि ,
समय समय पारम करियन्ति
भज भुजगेन्द्र शिवम्‌ त्रिशुलम्‌
तारेण देव देव
इति सिद्धम्‌

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