निम्न लिखित 10 मंत्र गुरु गोरखनाथ की उपासना | कार्य सिद्धि | गुरु गोरखनाथ रक्षा मंत्र बहुत प्रभावशाली है। Tantramantra.in एक विचित्र वेबसाइट है जो की आपके लिए प्राचीन तंत्र मंत्र सिद्धियाँ टोन टोटके पुरे विधि विधान के साथ लाती है! निम्नलिखित तंत्र मंत्र प्राचीन तंत्र मंत्र साहित्यो से लिए गए हैं! जैसे इंद्रजाल, लाल किताब, शाबर मंत्र संग्रह इत्यादि|
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Toggleगुरु गोरखनाथ रक्षा मंत्र
ओम गुरुजी ओम नमः वज्रं का कोठा जिसमें पिण्ड हमारा बैठा,
ईश्वर कुंजी ब्रह्मा का ताला मेरे आठो याम का हनुमन्त रखवाला ।
साधन विधि – इस मंत्र को शुभमुहुर्त अथवा मंगलवार से आरंभ करके दस हजार जप कर सिद्ध करे। हनुमान जी को रोट का बना चूरमा (गुड़ घी सहित) अर्पित करे। ग्यारह, इक्कीस अथवा चालीस दिन में दस हजार जप कर सकते हैं। प्रयोग विधि कार्य करते समय सात बार मंत्र का उच्चारण – करके स्वयं के शरीर पर फूंक मार दे अथवा हाथ फेर दे। फिर कार्य आरंभ करे
गुरु गोरखनाथ की उपासना
कलियुग में गुरु गोरखनाथ को सबसे ज्यादा जाग्रत देव माना गया है। तंत्र मंत्र एवं योंग के साधकों तथा भक्तों का सर्वाधिक ध्यान गोरखनाथ उपासना के प्रति आकर्षित होता है। गुरु गोरखनाथ योग एवं तंत्र शास्त्रों के प्रमुख देवता हैं। भगवान शिव का अवतार होने के कारण ये असीम शक्ति के स्तोत्र हैं। गुरु गोरखनाथ की उपासना शारीरिक ओज, तेज, यश, कांति, विद्या, सम्पत्ति, वैभव, सौभाग्य वाक सिद्धि में परमं सहायक हैं।
यही नहीं बल्कि भौतिक जीवन की रं नं. ॥ समृद्धि अन्न, धन, पशु, कृषि, पुत्र, पनि, पुरजन, परिजन आदि से – सम्पन्न रखने में भी गोरखनाथ की उपासना का महत्व है। इनकी उपासना से दैविक, दैहिक, भौतिक सभी सुख प्राप्त होते हैं। तथा गुरु गोरख नाथ की कृपा से साधक उपासक धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ का सुख भोगने में समर्थ हो जाता है। इनकी कृपा से साधक के एहिक और पारलौकिक सभी कार्य सिद्ध होते हैं। उपासना का अर्थ है – समीप रहना, पारमार्थिक तात्पर्य है आराधना, सेवा, अर्चना । जो उपासना करते हैं उसे उपासक कहते हैं और जिसकी उपासना की जाती है, वह ‘उपास्य’ कहलाता है । उपासक की महिमा में उपास की महिमा है और उपास्य की महिमा में उपासक का गौरव है : प्रयोजन के अनुसार उपास्य निर्धारित होता है
शिव गुरु गोरखनाथ
ॐ सत्यगुरु आदेश गुरु गोरक्षनाथ ज्ञानी
गुरु गोरक्षनाथ सुध बणी ब्रह्ममम्
विध सिद्ध बणी शिव सत्यम् अवतरण
कंठभूमि कंठयाणि भाग्यम वान्तिकर्ण
ब्रह्मा विष्णु महेश वर्णासरण
गौरक्षनाथ भजंन संसारम् |
नव नाथ भजं उभारम्
गुरु आदेश आदेश आदेश
नम: नम: नम:
इति सिद्धम्
कार्य सिद्धि कारक गुरु गोरखनाथ मंत्र
विधि :-
यह मंत्र तैतीस हजार या छत्तीस हजार जाप कर सिद्ध करे। इस मंत्र के प्रयोग के लिए इच्छुक उपासकों को पहले गुरु या रवि पुष्य, अमृत सिद्धियोग, सवार्थ सिद्धि योग या दीपाली की रात्रि से आरंभ कर तैतीस हजार या छत्तीस हजार का अनुष्ठान करे। बाद में कार्य साधना के लिये प्रयोग में लाने से ही पूर्णफल की प्राप्ति होना सुलभ होता है।
गों गोरक्षनाथ महासिद्धः सर्व व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ॥
यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वातपित्त कफोद भवाः ॥
तत्र राज भयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वेताला, रात्रसा प्रभवन्ति न ॥
ना काले मरण तस्य, न च सर्पेण दश्यन्ते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों।
गोरक्ष नाथ नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।
विभिन्न प्रयोग –
इस मंत्र को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है। भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है। मोर पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है। मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गल की गोलियों से हवन किया जाये तो सर्प भय मिट जाता है।
राक्षस उपद्रव हो तो ग्यारह हजार जप गुगल से हवन करे तो भय दूर होता है। अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरूआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बांधने से चौरसी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं।
इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करने से चोर, बैरिव सारे उपद्रव नाश हो जाता हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त हो जाता है। आग लगने पर इक्कीस बार मंतर का अभिमंत्रित करने के बाद पानी को छींटने से आग शान्त होती हैं। मोर पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोड दूर हो जाता है ।कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के साथ तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बांधने से ज्वर एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं।
सात बार जल अभिमंत्रित कर के पिलाने से पेट की पीड़ा बिल्कुल शांत होती है। पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है। यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बांध दी जाये तो जो प्राणी उस घंटी की नाद सुनता है
शिव गुरु गोरक्षज्ञानी ( गुरु गोरखनाथ मंत्र )
ऊँ गुरु गोरक्षनाथ ज्ञानी
ज्ञानी नाथो ने मानी जय गोरक्ष ज्ञानी
गोरक्षा करो जगत की
हटाओ दुख मिटाओ सब दर्द
कारज जाने सबके जय गोरक्ष ज्ञानी ,
फल की इच्छा करत जो नर नारी
मन की इच्छा जानी जय गोरक्ष ज्ञानी
शिव के अवतारा
जिसने योग ब्रह्म उतारा
जग लगी धर्म में गांढ
खोली गोरक्षनाथ।। जय गोरक्ष ज्ञानी
आओ आओ देव रक्षा करो
प्राण नाथ देव उतारो अधर्म की गठरी।
जो घर घर में पसरी।।
देव तुम्हारा पार न जाने कोय।
शिव गोरक्ष जाने सब कोए।।
जय जय गोरक्ष ज्ञानी जो नाथो ने मानी
जय जय गुरु गोरक्ष नाथ देव
इति सिद्धम्
(गुरु गोरखनाथ प्रचण्ड धूना मंत्र)
ॐआदिनाथ प्रचण्ड धूना अग्नि प्रविष्ठितिथायाम्
भूलोक॑ मध्यलोक आकाश तरु तारणी वियम्
नवनाथी प्रमप्रागतम् प्राणी मात्रमियम् प्रमात्मामयी
उत्थाननम् वनस्पतियायाम् पृथ्वी सूर्य अग्नि चन्द्रयायाम
ब्रहत् ब्रहत् संसारम्। के
( भगवा धारण करने का मंत्र )
ॐभगवा वस्त्र प्रम धाम धारिणी ,
वैहत्तरनाडी प्रज्जलितम्
पवित्रता मनुष्य वृती वर्म
भयानक्तिवियम् शुभम् आवाक्तिवियम्
ब्रह्मा विष्णु महेश्वरम् सत्यम् वर्णम
भग वस्त्रा पवित्रता मान्य वृत्ती धर्म
अल्पआयु सिद्धाश्रम् संस्थापकनम् संसारम्।
इति सिद्धम्
(गुरु गोरखनाथ लंगोट धारण करने का मंत्र )
ॐ ब्रह्मचारिणी उथापथिक्तिम् बाणावर्म धारिणीम्
ब्रह्माणियम् इन्द्राणियम् वशीभुतम् प्रमाणम्
भव: सागरम् तैरातिरम् पाक्यम वस्तुवियम्
महामाया संसारम् आयूरिणी वर्मम् घटान्तरम् ब्रह्मम्
रोक्ति प्रथा महायोगी जन भाक्रायान्ति सुमन
वशीभुतम् ब्रह्माण्डम् पूर्ण शरीरम् खगोलिकिकम्
पण पण धर्मम संसारम्
इति इर्धारण संसारम्
इति सिद्धम् प्रोहाष्यम्
इति सिद्धम्
( गुरु गोरखनाथ चिमटा का मंत्र )
सागर मन्थन प्रयाणुयण
चिमटा बाजा भयानक्तम्
असुर संहारे चिमटन शिव अंगारे
नीला धारा उत्त्पथिक्यतम्
विजाक्ति विष प्याला
कंठ नीला अम्बरम्
शिव शरीरम् नीला अम्बरम्
कैलाशपति चिमटा चलम्चल
व्यारे संहारे दैत्यं शिष कटटम्
कैलाश चिमटा उत्तारणमों
शिप्नतम् सत्यम्Related