निम्न लिखित 10 मंत्र गुरु गोरखनाथ की उपासना | कार्य सिद्धि | गुरु गोरखनाथ रक्षा मंत्र बहुत प्रभावशाली है। Tantramantra.in एक विचित्र वेबसाइट है जो की आपके लिए प्राचीन तंत्र मंत्र सिद्धियाँ टोन टोटके पुरे विधि विधान के साथ लाती है. TantraMantra.in कहता है सभी तांत्रिक मित्रों को इन कार्यविधियों को गुरु के मध्य नज़र ही करना चाहिये। तथा इन इलमो को केवल अच्छे कार्य में ही इस्तेमाल करना चाहिए, अन्यथा आपको इसके बुरे परिणाम का सामना खुद ही करना होगा ।
कुदरती टोटके जो पढ़ेगा और बिना किसी व्यक्ति को बताये करेगा उसी का कार्य सम्पूर्ण होगा। निम्नलिखित तंत्र मंत्र प्राचीन तंत्र मंत्र साहित्यो से लिए गए हैं! जैसे इंद्रजाल, लाल किताब, शाबर मंत्र संग्रह इत्यादि|
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Toggleगुरु गोरखनाथ की उपासना
कलियुग में गुरु गोरखनाथ को सबसे ज्यादा जाग्रत देव माना गया है। तंत्र मंत्र एवं योंग के साधकों तथा भक्तों का सर्वाधिक ध्यान गोरखनाथ उपासना के प्रति आकर्षित होता है। गुरु गोरखनाथ योग एवं तंत्र शास्त्रों के प्रमुख देवता हैं। भगवान शिव का अवतार होने के कारण ये असीम शक्ति के स्तोत्र हैं। गुरु गोरखनाथ की उपासना शारीरिक ओज, तेज, यश, कांति, विद्या, सम्पत्ति, वैभव, सौभाग्य वाक सिद्धि में परमं सहायक हैं।
यही नहीं बल्कि भौतिक जीवन की रं नं. ॥ समृद्धि अन्न, धन, पशु, कृषि, पुत्र, पनि, पुरजन, परिजन आदि से – सम्पन्न रखने में भी गोरखनाथ की उपासना का महत्व है। इनकी उपासना से दैविक, दैहिक, भौतिक सभी सुख प्राप्त होते हैं। तथा गुरु गोरख नाथ की कृपा से साधक उपासक धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ का सुख भोगने में समर्थ हो जाता है। इनकी कृपा से साधक के एहिक और पारलौकिक सभी कार्य सिद्ध होते हैं। उपासना का अर्थ है – समीप रहना, पारमार्थिक तात्पर्य है आराधना, सेवा, अर्चना । जो उपासना करते हैं उसे उपासक कहते हैं और जिसकी उपासना की जाती है, वह ‘उपास्य’ कहलाता है । उपासक की महिमा में उपास की महिमा है और उपास्य की महिमा में उपासक का गौरव है : प्रयोजन के अनुसार उपास्य निर्धारित होता है
शिव गुरु गोरखनाथ
कार्य सिद्धि कारक गुरु गोरखनाथ मंत्र
विधि :-
यह मंत्र तैतीस हजार या छत्तीस हजार जाप कर सिद्ध करे। इस मंत्र के प्रयोग के लिए इच्छुक उपासकों को पहले गुरु या रवि पुष्य, अमृत सिद्धियोग, सवार्थ सिद्धि योग या दीपाली की रात्रि से आरंभ कर तैतीस हजार या छत्तीस हजार का अनुष्ठान करे। बाद में कार्य साधना के लिये प्रयोग में लाने से ही पूर्णफल की प्राप्ति होना सुलभ होता है।
गों गोरक्षनाथ महासिद्धः सर्व व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ॥
यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वातपित्त कफोद भवाः ॥
तत्र राज भयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वेताला, रात्रसा प्रभवन्ति न ॥
ना काले मरण तस्य, न च सर्पेण दश्यन्ते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों।
गोरक्ष नाथ नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।
विभिन्न प्रयोग –
इस मंत्र को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है। भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है। मोर पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है। मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गल की गोलियों से हवन किया जाये तो सर्प भय मिट जाता है।
राक्षस उपद्रव हो तो ग्यारह हजार जप गुगल से हवन करे तो भय दूर होता है। अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरूआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बांधने से चौरसी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं।
इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करने से चोर, बैरिव सारे उपद्रव नाश हो जाता हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त हो जाता है। आग लगने पर इक्कीस बार मंतर का अभिमंत्रित करने के बाद पानी को छींटने से आग शान्त होती हैं। मोर पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोड दूर हो जाता है ।कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के साथ तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बांधने से ज्वर एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं।
सात बार जल अभिमंत्रित कर के पिलाने से पेट की पीड़ा बिल्कुल शांत होती है। पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है। यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बांध दी जाये तो जो प्राणी उस घंटी की नाद सुनता है
शिव गुरु गोरक्षज्ञानी ( गुरु गोरखनाथ मंत्र )
(गुरु गोरखनाथ प्रचण्ड धूना मंत्र)
( भगवा धारण करने का मंत्र )
(गुरु गोरखनाथ लंगोट धारण करने का मंत्र )
( गुरु गोरखनाथ चिमटा का मंत्र )
(गुरु गोरखनाथ रुद्राक्ष शुद्ध और सिद्ध करने का मंत्र)
शरीर रक्षा के मंत्र
साधन विधि – इस मंत्र को शुभमुहुर्त अथवा मंगलवार से आरंभ करके दस हजार जप कर सिद्ध करे। हनुमान जी को रोठ का बना चूरमा (गुड़ घी सहित) अर्पित करे। ग्यारह, इक्कीस अथवा चालीस दिन में दस हजार जप कर सकते हैं। प्रयोग विधि कार्य करते समय सात बार मंत्र का उच्चारण – करके स्वयं के शरीर पर फूंक मार दे अथवा हाथ फेर दे। फिर कार्य आरंभ करे
गुरु गोरखनाथ शाबर – गायत्री मन्त्र
ॐ गुरु जी,
सत नमः”आदर्श”
न जी को आदेश ।
ॐ कारे गुरुशिव-रूपी,
मध्याह्ने हंस-रूपी, सन्ध्यायां साधु-रूपी ।
हंस, परमहंस- दो अक्षर |
गुरु तो गोरक्ष, काया तो गायत्री ।
ॐ ब्रह्म, सोऽहं शक्ति:
शून्य माता, अवगत पिता, विहङ्गम जात,
अभय – पन्थ, सूक्ष्म – वेद, असंख्य शाखा,
अनन्त प्रवर, निरञ्जन गोत्र, त्रिकुटी क्षेत्र, जुगति जोग, जल-स्वरूप रुद्र-वर्ण ।
सर्व देवः ध्यायते । आए श्री शम्भु जति गुरु गोरखनाथ ।
ॐ सोsहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षः प्रचोदयात् ।
ॐ इतना गोरख – गायत्री जाप सम्पूर्ण भया ।
गङ्गा गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र कोलावल अनुपान – शिला पर सिद्धासन बैठ ।
नव-नाथ चौरासी सिद्ध, अनन्त कोटि- सिद्ध-मध्ये
श्री शम्भु जति गुरु गोरखनाथ जी कथ पढ़, जप के सुनाया ।
सिद्धो गुरुवरो, आदेश – आदेश ||
साधन – विधि एवं प्रयोग – प्रतिदिन गोरखनाथ जी की प्रतिमा का पञ्चोपचार से पूजन कर २१, २७, ५५ या १०८ जप करे । नित्य- जप से भगवान् गोरखनाथ की कृपा मिलती है, जिससे साधक और उसका परिवार सदा सुखी रहता है। बाधाएँ स्वतः दूर हो जाती हैं। सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है और अन्त में परम पद प्राप्त होता है ।