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कर्ण पिशाचिनी साधना
इस मंत्र को गुप्त त्रिकालदर्शी मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र के साधक को किसी भी व्यक्ति को देखते ही उसके जीवन की सूक्ष्म से सूक्ष्म घटना का ज्ञान हो जाता है। उसके विषय में विचार करते ही उसकी समस्त गतिविधियों एवं कलाओं का ज्ञान हो जाता है।
कर्ण पिशाचिनी साधना वैदिक विधि से भी सम्पन्न की जाती है और तांत्रिक विधि से भी अनुष्ठानित की जाती है। यहां वैदिक विधि द्वारा सम्पन्न की जाने साधना का वर्णन किया जा रहा है।
मंत्र:—
ॐ लिंगं सर्वनाम शक्तिव भगती कर्ण
पिशाचनी चण्ड रूपी सत्य
सत्य मम वचन दे स्वाहा।
विधि:— किसी भी नवरात्र में शुद्ध—शुद्धि, स्थान—शुद्धि, गुरु स्मरण, गणेश पूजन, नवग्रह पूजन से पूर्व एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। उस पर तांबे का एक लोटा या कलश—स्थापन करें। कलश पर पानी वाला नारियल रखें। कलश के चारों ओर पान, सुपारी,सिंदूर व 2 लड्डू रखें। कलश—पूजन करके साध्यात्मक प्रणाम करें।
इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा रखकर उपरोक्त मंत्र का जप करें। जप पूर्ण होने पर पहले सामगी से, फिर खीर से और अंत में मिश्रित से होम करें। इसके उपरांत क्षमा—याचना कर साधना देवी को खीर कलश में रखे चन्दन चढ़ाकर प्रणाम करें। अनुष्ठान के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन एवं एकान्तवास करें। स्त्रियोंका स्पर्श करते हुए सभी नियमों का पालन करें। झूठ, चोरी, अत्याचार, बेईमानी से दूर रहें।
समय:— नवरात्र। यदि ग्रहण काल में आरम्भ करें तो स्पर्श काल से 15 मिनट पूर्व आरम्भ करके मोक्ष के 15 मिनट बाद तक करें। ग्रहण—काल में नदी के किनारे अथवा श्मशान में जप करें। आवश्यक समस्त सामग्री अपने साथ रखें।
सामग्री:—
- पान,
- सुपारी,
- लौंग,
- सिंदूर,
- नारियल,
- अगर—ज्योति,
- लाल वस्त्र,
- जल का लोटा,
- लाल चन्दन की माला जप करने के लिए,
- दो लड्डू।
जप संख्या:— एक लाख।
हवन सामगी:—
- सफेद चन्दन का चूरा,
- लाल चन्दन का चूरा,
- लोबान,
- गूगल प्रत्येक 300 ग्राम,
- कपूर लगभग 100 ग्राम,
- लौंग 10 ग्राम,
- अगर 50 ग्राम,
- तगर 50 ग्राम,
- केशर 2.5 ग्राम,
- कस्तूरी 1 ग्राम,
- बादाम गिरी 50 ग्राम,
- काजू 50 ग्राम,
- अखरोट गिरी 50 ग्राम,
- गोला 50 ग्राम,
- छुहारा 50 ग्राम,
- मिश्रि का बूरा।
इन सभी को बारीक करके मिला लें। इसमें घी भी मिलाएं। फिर खीर बनाएं। चावल कम दूध ज्यादा रखें। खीर में पांच मेवे डालें। देसी घी, शहद, व चीनी भी डालें।
विशेष:— जप करने के उपरांत 10,000 मंत्रों से हवन करें। हवन के दशांश का तर्पण, उसके दशांश वानि एक माला से मार्जन और उसके बाद 10 कन्याओं एवं एक बटुक को भोजन कराकर गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त करें।
नोट:— उपरोक्त साधना के लिए गुरु—दीक्षा आवश्यक है, अन्यथा प्रयास असफल रहता है।